Wednesday, February 27, 2008

हिंदु हृदय सम्राट: विनायक दामोदर सावरकर

पंकज भारती

पुण्यतिथी २६ फरवरी पर विशेष
महान स्वतंत्रता सेनानी, हिंदुत्व के पैरोकार और एक राष्ट्र व एक संस्कृती के प्रणोता के रूप में वीर विनायक दामोदर सावरकर नाम उभरकर आता है। आजादी के महायज्ञ में आहूतियां देने वाले हजारों वीरों के मध्य विनायक दामोदर सावरकर का नाम एक अहम स्थान रखता है। हालांकि अपनी कट्टर हिंदुवादी विचारधारा के साथ ही कांग्रेस और महात्मा गांधी के विचारों से अधिकांशत: असहमति के कारण अनेक इतिहासकारों व विचारकों ने उनके कार्यो को कम करके आंका, किंतु इससे आजादी के महायज्ञ में उनके योगदान की अहमियत कम नहीं हो जाती। अपने जिवन का अधिकांश समय अंडमान की जेल में काटने वाले सावरकार संभवत: प्रथम हिंदुवादी राजनेता के रूप में सामने आए। महात्मा गांधी हत्या कांड के आरोपी गोड़से व नारायण आप्टे से संबंधों के चलते वीर सावरकर पर भी गांधी हत्या का मुकदमा चलाया गया किंतु साक्ष्यों के आभाव के चलते उन्हे बरी कर दिया गया।

२८ मार्च १८८३ को नासीक के निकट एक जागीरदार परिवार में जन्में विनायक दामोदर सावरकर अपनी बाल्यावस्था से ही तंत्रता आंदोलनों में सक्रिय हो गए थे। स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग व विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार पर इन्होंने विशेष बल दिया। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अपने युवा मित्र मंडली के साथ इन्होंने विदेशी उत्पादों की होली जलाई। 1906 में कानून के अध्यन के लिए वे स्कॉलरशिप प्राप्त कर लंदन रवाना हुए। वहां पर उन्होंने इंडिया हाउस से जुड़कर सवतंत्रता आंदोलन की मशाल थामे रखा।

सन् 1908 में सावरकर द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास नामक पुस्तक की रचना की गयी, जिसमें उन्होंने 1857 की क्रांति को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बताया। इस पुस्तक को छपने से पहले ही अंग्रेजी सरकार द्वारा इसके भारत व ब्रिटेन में प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कुछ समय पश्चात मदाम भीकाजी कामा के प्रयासों से यह किताब हालैंड में छपी व इसकी कुछ प्रतियां भारत में लाई गयी। इस पुस्तक ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुडे हजारों व्यक्तियों को काफी प्रभावित किया। इस किताब का भिन्न भाषाओं में अनुवाद भी किया गया, पंजाबी व ऊदरू के साथ ही बंगली में इसका अनुवाद स्वंय नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा किया गया।

अपनी अंग्रेजी सरकार विरोधी गतिविधियों के चलते ब्रिटीश सरकार उन्हें गिरफ्तार करने के लिए बेकरार थी। वीर सावरकर को 13 मार्च 1910 को बंदी बनाकर जलयान द्वारा भारत के लिए रवाना कर दिया गया। भारत लाने के दौरान सावरकर अंग्रेज अधिकारियों को चकमा देकर व सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताकर फरार होकर फ्रांस पहुंच गए, लेकिन फ्रांसीसी भाषा नहीं जानने के कारण वह फ्रांसीसी पुलिस को यह नहीं बता सके कि वह शरणार्थी है। फिरंगी पुलिस उन्हं पुन: बंदी बनाकर भारत लाई जहां पर मुकदमे के पश्चात 24 दिसंबर 1910 को उन्हें 50 साल की कैद की सजा सुनाई गयी।
50 साल की सजा मिलने पर उनके अनुयायीयों द्वारा उनकी रिहाई का काफी प्रयास किया गया। सन् 1920 में विठ्ठल भाई पटेल ने सावरकर की रिहाई की मांग करी जिसे महात्मा गांधी व जवाहर लाल नेहरू द्वारा ठुकरा दिया गया।

सावरकर ने हिंदु महासभा का गठन कर हिंदुओं में काफी लेकप्रियता हासिल करी। उन्होंने एक राष्ट्र व एक संस्कृति के आधार पर राष्ट्रीयता का आह्वान करा। 1937 से 1943 तक वे हिंदु महासभा के अध्यक्ष भी रहे। महात्मा गांधी व कांग्रेस का उन्होंने अधिकांशत: विरोध ही किया। गांधी हत्या के आरोपियों गोड़से व नारायण आप्टे से निकटता के चलते सावरकर पर भी गांधी हत्याकांड के तहत मुकदमा चलाया गया किंतु साक्ष्यों के आभाव में उन्हें बरी कर दिया गया।

Monday, February 25, 2008

पीढ़ियां संवारने वाले सर सेठ हुकुमचंद

पंकज भारती
26 फरवरी को सर सेठ हुकुमचंद की पुण्यतिथि पर विशेष
माता अहिल्या की तरह शहर का नाम रोशन करने वाले स्व. सर सेठ हुकुमचंद ने शहर में टेक्सटाइल उद्योग की स्थापना कर हजारों मजदूरों की रोजी-रोटी की व्यवस्था की थी। इंदौर की वर्तमान रौनक में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। क्लॉथ मार्केट की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शेयर्स के व्यापार में अमेरिका तक उनका प्रभाव रहा।

सेठजी स्वयं के लिए नहीं जिए, उन्होंने समाज के लिए जितना किया और जितना दिया उसे भुलाया नहीं जा सकता है। शहर में कांच मंदिर, नसिया में मंदिर और धर्मशाला के साथ ही श्राविकाश्रम का निर्माण कर उन्होंने महिलाओं के उद्धार के लिए भी काम किया। शिक्षा के क्षेत्र में संस्कृत महाविद्यालय की भी स्थापना की। उनके द्वारा बनाए गए छात्रावास में पढ़े विद्यार्थी आज भी देश-विदेश में उनकी यशगाथा गा रहे हैं।

भारत के करीब सभी तीर्थो में किसी न किसी रूप में उनका नाम अवश्य मिलेगा। यदि हमने परिवार संवारे हैं तो उन्होंने पीढ़ियां संवारी हैं। उनके रंगमहल में हाथी-घोड़े, बग्घी और सोने की कार सहित ऐशो आराम के कई साधन थे। स्व. सेठजी के जीवन से यह संदेश मिलता है कि यह महत्वपूर्ण नहीं कि किसने कितना कमाया बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि समाज के लिए किसने कितना योगदान दिया। स्व. सर सेठ हुकुमचंद की पुण्यतिथि पर सादर प्रणाम और विनम्र श्रद्धांजलि।

Tuesday, February 5, 2008

गौरवशाली लोकतंत्र के युवा सारथी

पंकज भारती

२६जनवरी पर विशेष.
नियती से किया हुआ वादा जब सच हुआ और आजादी के पंख लिए एक गौरवशाली भारतीय लोकतंत्र की यात्रा के छह दशक उस सुनहरें सपने की अभिव्यक्ति है। नियती से किया हुआ हर वादा सौ करोड़ भारतीयों ने सच किया है और पूरे दिल से जम्मू से कन्याकुमारी तक हर भारतीय देश की एकता अंखडता और उसके स्वाभिमान की रक्षा के लिए तत्पर है।

अपनी एकता, अखंडता और सांस्कृ तिक व नैतिक मूल्यों को सहेजकर पूरी हुई लगभग ६ दशकों की यात्रा में भारत के लोकतंत्र ने संपूर्ण दुनिया के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया है। हालांकि इस यात्रा के दौरान ऐसे कई मुकाम आए जब हमारे लोकतंत्र पर संकट के बादल छाए लेकिन हर बार हमने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति व आत्मविश्वास के बल पर न सिर्फ लोकतंत्र विरोधी ताकतों को हराया बल्कि और अधिक मजबूती के साथ अपने आपको स्थापित किया।

54 फीसदी से अधिक युवाओं वाले देश में आज भले ही आजादी की लड़ाई के मूल्य तनिक धुंधले दिखलाई पड़ते हो तथा बदलते दौर में राष्ट्रीय पर्व महज औपचारिकता बनकर रह गए हो लेकिन सच तो यह है कि हमारी युवा शक्ति आज भी अपने देश को उसी जज्बे से प्यार करती है जिसका सपना हमारे नायकों ने देखा था। आजादी की जंग में अपना सर्वस्व निछावर करने वाले नौजवानों का सपना आज भी हम अपनी मौजूदा युवा पीढ़ी की आंखों में देख सकते हैं।

सही है कि आज हमारा प्रशासनिक व राजनैतिक तंत्र लगभग संवेदनाहीन की स्थिती में पहुंच गया है इसके बावजूद देश के नागरिकों का संविधान में विश्वास बना हुआ है। यह संविधान में विश्वास का ही परिणाम है कि नैना साहनी व जाहिरा शेख जैसे मामलों में अंतत: गुनाहगारों को सजा प्राप्त हुई।
आज हम हर क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहे है, युवा उद्यमियो, कलाकारों, खिलाड़ियों आदि ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन के बल पर संपूर्ण विश्व को अचंभित कर दिया है। यही कारण है कि सांप, साधू व सपेरों से पहचाने जाने वाला हमारा देश दुनिया के सामने एक तेजी से बढ़ते हुए प्रगतिशील व आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आया है।

भारी तादाद में युवाओं से सुसज्जित देश अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अब किसी भी सीमा को तोड़ने के लिए तत्पर है। हमारे सामने एक प्रयोगधर्मी और प्रगतिशील पीढ़ी खड़ी है जिस पर सारी दुनिया विस्मित है। आज हमारे देश की तरफ संसार बड़ी उम्मीद से देख रहा है और हम जिस तेज गति से विकासमान है उसे देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी जब विकसित राष्ट्रो में शुमार होंगे ।

संविधान लागू होने के ५८ वर्षो के बाद भी हमारे सामने कुछ ऐसी समस्यायें मुंह उठाए खडी हैं जो हमारे लोकतंत्र के विपरीत हैं तथा इसे कमजोर करने को आतुर हैं। कई स्तरों पर विभाजित समाज में भाषा, जाति, धर्म और प्रांतवाद की तमाम दीवारें हैं जिनमें से कई का निमार्ण तो हमने स्वयं ही किया है। वर्तमान में हमारे सामने वहीं सवाल मुंह उठाए खड़े हैं, जिनके चलते देश का बटवारा हुआ था और महात्मा गांधी जैसी विभूतियां भी इस बटवारे को रोक नहीं पाई। देश के अनेक हिस्सों में चल रहे अतिवादी आंदोलन चाहे वो किसी भी नाम से चलाये जा रहे हो अथवा किसी भी विचारधारा से प्रेरित हो सबका उद्देशय भारत की प्रगति मार्ग में रोड़े अटकाना ही है। हमें इन चुनोतियों का सामना मिलजुल कर करना होगा और बदलाव की उम्मीद 54 फीसदी युवाओं से करनी ही होगी । वक्त पुकार रहा है एक ऐसे सपने को साकार करने का जो हम सबका हक है और देश के अमन चैन को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को जबाब देना ही होगा ।

लोकतंत्र को सार्थक करने के लिए हमें साधन- संपन्न व हाशिये पर खड़े लोगों को एक स्तर पर देखना होगा, क्योंकि लोकतंत्र तभी सार्थक है जब वह हिंदुस्तान के प्रत्येक व्यक्तियों को समान विकास के अवसर उपलब्ध करवाये। संविधान सभी के लिए समान है यह बात सिर्फ नारों में नहीं व्यवहार में भी दिखनी चाहिए। हमें राम मनोहर लोहिया की यह बात ध्यान रखनी चाहिए की लोकराज लोकचाल से चलता है। महात्मा गांधी ने भी समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति को भी वही अवसर व सुविधांए प्रदान करने की बात कहीं जो समाज के प्रथम व्यक्ति को प्राप्त है।

प्रगति व विकास के सूचकांक तभी सार्थक हैं जब वे आम आदमी के चेहरे पर मुस्कान लाने में समर्थ हो। देश के तमाम वंचित लोगों को छोड़कर हम अपने सपनों को सच नहीं कर सकते तो आईये गणतंत्र के इस पावन अवसर पर हम अपने देश को सुदृढ़ करने व विकास की राह पर निरंतर प्रगतिशील रखने की प्रतिज्ञा करें।


मेरा यह लेख भास्कर डॉट कॉम में 26 जनवरी 2008, को गणतंत्र दिवस विषेश में प्रकाशित हो चुका है। अति व्यस्तता के चलते मैं इसे अपने ब्लॉग पर अपलोड नहींे कर सका, यह कार्य में आज दिनॉक को संपन्न कर रहा हूॅं। यहां भास्कर डॉट कॉम की लिंक भी दे रहा हूं जिस पर क्लिक करके आप यह लेख भास्कर में भी पढ़ सकते है।

http://www.bhaskar.com/2008/01/26/0801260346_india_republic_day.html