Monday, April 28, 2008

नजर आ रहा है मुनाफा

पंकज भारती
अमरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की मार, शेयर बाजार बेहाल, देश में मंहगाई दर का लगभग प्रतिदिन नए रिकॉर्ड बनाना आदि के प्रभाव से सरकार के साथ ही व्यापार जगत के तमाम दिग्गजों के माथे पर बल पड़ना स्वाभाविक है लेकिन इन तमाम नकारात्मक बातों के बावजूद व्यापार कॉरपोरेट जगत का एक वर्ग ऐसा है जो इसे लेकर कोई खास परेशान नहीं दिख रहा, और यह वर्ग है विभिन्न उद्योगों के मार्केटिंग प्रमुख।

एक निजी संस्थान की ताजा रिपोर्ट पर यकीन करें तो वैश्विक मंदी के बावजूद मार्केटिंग प्रमुख अधिक विचलित नजर नहीं आते बल्की वह तो इस संकट को अपने लिए बेहतर अवसर के रूप में देख रहे हैं और उनका कार्य भी इसी के अनुरूप है। उन्हें बाजार में मुनाफा नजर आ रहा है इसी कारण उन्होंने अपने विज्ञापन व प्रचार पर खर्च होने वाली धनराशी में गत वर्ष के मुकाबले २७ प्रतिशत तक की बढ़ोतरी करने का फैसला लिया है।

रिपोर्ट के अनुसार देश के दिग्गज मार्केटिंग प्रमुखों को बैकिंग, उपभोक्ता वस्तुओं, ऑटोमोबाइल, दूरसंचार आदि क्षेत्रों में उपभोक्ता गत साल की तुलना में अधिक पैसा खर्च करने की उम्मीद है। यह लोग नई दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु और चैन्नई के उपभोक्ताओं के खर्च को लेकर तो आश्वस्त है हि साथ ही वह यह भी कयास लगा रहे हैं कि इन माहानगरों के साथ ही तेजी से महानगर में तब्दील होते अन्य छोटे शहरों के उपभोक्ता भी दिल खोल कर खर्च करेंगे जिससे इनका मुनाफा मंदी के बावजूद भी कम नहीं होगा।

पिच-मैडिसन एडवर्टाइजिंग आउटलुक के सर्वेक्षण में शामिल लगभग 70 प्रतिशत मार्केटिंग प्रमुखों को लगता है कि मार्केटिंग और विज्ञापन के बजट में उन्हंे कम से कम २क् फीसदी का इजाफा करना पड़ेगा। वहीं ८८ प्रतिशत मार्केटिंग प्रमुखों का मानना हैं कि यह साल गत वर्ष से बेहतर रहेगा।

चढ़ती मंहगाई..

कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, कमोडिटी की कीमतों में उछाल और वैश्विक खाद्य संकट को देखते हुए मंहगाई में तेजी अचरज का विषय नहीं । हालांकि इसमें इस कदर उछाल होगा इसकी उम्मीद नहीं थी। महीने भर के अंदर मंहगाई दर ५ फीसदी से उछलकर ७ फीसदी तक पहुंच गई। इस उछाल ने सरकार, उपभोक्ताओं और अन्य क्षेत्रों को कमजोर स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया।

महंगाई की इस उछाल में खाद्य तेलों, स्टील और लौह अयस्क की बढ़ी हुई कीमतों ने अहम भूमिका निभाई है। वह तो गनीमत है कि सरकार ने कच्चे तेल की चढ़ी कीमतों को पूरी तरह उपभोक्ताओं तक पहुंचने नहीं दिया वरना महंगाई की जो तस्वीर हमें अभी दिखाई दे रही है वह और भी स्याह हो सकती थी। हालांकि इस प्रकार की परिस्थितियों का सामना हमने पहले भी करा है किंतु वर्तमान में मंहगाई की दर में जो तेजी व्याप्त है उसने भय का माहौल बना दिया है।

खाद्य और कमोडिटी की कीमतों में आग लगने की वजह से पूरी दुनिया में महंगाई की दर में तेजी का आलम है। विश्व बैंक समूह का अनुमान है कि खाद्य और ऊर्जा से जुड़ी चीजों की कीमतों में आई भयंकर तेजी की वजह से तकरीबन ३३ देशों में सामाजिक उथल-पुथल की आशंका पैदा हो गई है। हालांकि भारत वैश्विक कीमतों में हो रही बढ़ोतरी से थोड़ा अलग रहा है। इस साल जनवरी से मार्च के दौरान विश्व के बाजारों में गेहूं और चावलों की कीमतों में जबरजस्त उछाल देखने को मिला जिसकी तुलना में भारत में इनका मूल्य उतना नहीं चढ़ा।
उत्पादन की बात की जाए तो साल 2003-2004 से 2007-2008 के मध्य गेहूं के उत्पादन में मात्र 0.9 फीसदी की सालाना वृद्ध दर्ज की गई जबकि इस दौरान हमारी आबादी बढ़ने की दर खाद्य उत्पादन की दर के मुकाबले काफी अधिक रही। इस वजह से गेहूं के बफर स्टॉक में भारी कमी हो गई। इसका नतीजा यह निकल रहा है कि हम धीरे-धीरे आयात पर निर्भर होते जा रहे हैं। खाद्य तेल से जुड़ी फसलों के साथ भी यही बात लागू होती है। वैश्विक स्तर पर आई खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी का असर भारत में मंहगाई की दर पर स्पष्ट देखा जा सकता है। कारण यह है कि सोयाबीन को छोड़कर लगभग सभी वस्तुओं के लिए हम काफी हद तक आयात पर निर्भर है।

मूल्यों में लगी आग को बुझाने के लिए सरकार अनेक प्रकार के उपायों की घोषणा की है। इसके अंतर्गत खाद्य तेलों के आयात पर लगने वाली डच्यूटी में कमी के साथ ही इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। हालांकि इन उपायों का महंगाई की दर पर अधिक व्यापाक असर होता दिखाई नहीं पड़ रहा है। महंगाई की दर में हो रही बढ़ोतरी वैश्विक परिस्थतियों के अलावा लंबे समय तक कृषि की उपेक्षा का नतीजा है। खद्यान की बढ़ती खपत को देखते हुए हमें कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को ध्यान में रखकर नीतियां बनाने की जरूरत है, ताकि इस मामले में आत्मनिर्भरता हांसिल की जा सके।

वैश्विक घाद्य संकट के फिलहाल बने रहने की आशंका है। जब तक खाद्यान में आत्मनिर्भरता हांसिल नहीं की जाती, तब तक कमजोर तबके के लोगों के लिए सब्सिडी और अनाज का वितरण जैसे कार्यक्रम को प्रभावकारी तरीके से चलाया जा सकता है। इस कार्यक्रम की अपनी सीमाओं के बावजूद यह कीमतों को नियंत्रित करने की कवायद से ज्यादा प्रभावकारी होगा।

पंकज भारती

09892403516

उपसंपादक

भास्कर डॉट कॉम, मुंबई

Thursday, April 24, 2008

वायदा कारोबार पर प्रतिबंध अनुचित

पंकज भारती.
खाद्य उत्पादों के भावों में लगी आग के लिए इसमें जारी वायदा कारोबार को देष देना बिलकुल अनुचित है। कमोडिटी के भावों में जारी वर्तमान तेजी वायदा कारोबार के कारण नहीं बल्की इन खाद्य पदार्थो के उत्पादन में आयी कमी के कारण है। वायदा कारोबार से तेा किसानों को फायदा ही पहुंचता है, उन्हें इसके माध्यम से यह तो पता चल ही जाता है कि उनकी फसल को कारोबारी किस भाव पर लेना चाह रहे है या उस फसल का वायदा कारोबार में क्या भाव चल रहा है जिससे वह उसे उचित कीमत पर हाजिर बाजार में बेंच सके। वायदा कारोबार से किसान जागरुक हुआ है अब वह अपनी फसल औने पौने दाम पर व्यापारियों को नहीं बेचता।
वायदा कारोबार के प्रभाव के अध्यन के लिए जिस सेन कमेटी की रिपोर्ट का सरकार इंतजार कर रही है उसी के सदस्यों के द्वारा किए गए स्टडी के अनुसार फ्यूचर ट्रेडिंग और खुदरा भावों में कोई रिश्ता नहीं है। कमेटी के अधिकांश सदस्यों की राय तो यह है कि गेहूं , चावल, अरहर और उडद के वायदा कारोबार पर लगी रोक हटानी चाहिए। तथा किसानों को वायदा कारोबार से ज्यादा से ज्यादा जोडा जाए ताकि कमोडिटी एक्सचेंजों के जरिए उन्हंे फसल के अच्ठे दाम मिल सके।
मौजूदा वायदा कारोबार में एक्सचेंज पर सबसे छोटा कांट्रेक्ट 10 टन का होता है। इसे सरकार और छोटा आकार दे सकती है जिससे छोटे किसान भी एक्सचेंज पर फसल बेंच सके। महंगाई के नाम पर वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाना अनुचित रहेगा। वैसे सरकार ने महंगाई पर लगाम लगाने के लिए पिछले साल गेहूं सहित कुछ दालों व चावल के वायदा कारोबार पर रोक लागाई थी , लेकिन पिछले एक साल में तुअर दाल और चावल महंगे ही हुए है। गेहूं की कीमते भी बढ़ी है। हां उडद दाल जरुर थोडी सस्ती हुई है। अगर वायरा कारोबार से भाव चढ़ते तो चीनी के भाव भी चढ़ने चाहिए थे क्योंकि इसमें वायदा कारोबार चालू है। इसी प्रकार खाद्य तेलो के वायदा कारोबार को रोकने से इसकी कीमतोंे पर कोई प्रभाव पडने वाला नही है। क्योंकि देश में खाद्य तेलो की कुल मांग के आधे से अधिक हिस्से की आपूर्ति आयातित तेलो से होती है। वैसे भी घरेलू बाजार में पॉम तेल की कीमते मलेशिया व सोया तेल के भाव अमेरिका से प्रभावित रहते है।
फिलहाल अगर जरूरी चीजो के वायदा कारोबार पर रोक लगाई जाती है तो एक्सचेंज का कारोबार घटकर आधा रह सकता है। क्योंकि कमोडिटी एक्सचेंजों के कारोबार में चीनी, चना, सोयाबीन और रिफांइड सोया के साथ ही मक्का की खासी हिस्सेदारी है।
पंकज भारती. 09892403516