पंकज भारती
पुण्यतिथी २६ फरवरी पर विशेष
महान स्वतंत्रता सेनानी, हिंदुत्व के पैरोकार और एक राष्ट्र व एक संस्कृती के प्रणोता के रूप में वीर विनायक दामोदर सावरकर नाम उभरकर आता है। आजादी के महायज्ञ में आहूतियां देने वाले हजारों वीरों के मध्य विनायक दामोदर सावरकर का नाम एक अहम स्थान रखता है। हालांकि अपनी कट्टर हिंदुवादी विचारधारा के साथ ही कांग्रेस और महात्मा गांधी के विचारों से अधिकांशत: असहमति के कारण अनेक इतिहासकारों व विचारकों ने उनके कार्यो को कम करके आंका, किंतु इससे आजादी के महायज्ञ में उनके योगदान की अहमियत कम नहीं हो जाती। अपने जिवन का अधिकांश समय अंडमान की जेल में काटने वाले सावरकार संभवत: प्रथम हिंदुवादी राजनेता के रूप में सामने आए। महात्मा गांधी हत्या कांड के आरोपी गोड़से व नारायण आप्टे से संबंधों के चलते वीर सावरकर पर भी गांधी हत्या का मुकदमा चलाया गया किंतु साक्ष्यों के आभाव के चलते उन्हे बरी कर दिया गया।
२८ मार्च १८८३ को नासीक के निकट एक जागीरदार परिवार में जन्में विनायक दामोदर सावरकर अपनी बाल्यावस्था से ही तंत्रता आंदोलनों में सक्रिय हो गए थे। स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग व विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार पर इन्होंने विशेष बल दिया। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अपने युवा मित्र मंडली के साथ इन्होंने विदेशी उत्पादों की होली जलाई। 1906 में कानून के अध्यन के लिए वे स्कॉलरशिप प्राप्त कर लंदन रवाना हुए। वहां पर उन्होंने इंडिया हाउस से जुड़कर सवतंत्रता आंदोलन की मशाल थामे रखा।
सन् 1908 में सावरकर द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास नामक पुस्तक की रचना की गयी, जिसमें उन्होंने 1857 की क्रांति को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बताया। इस पुस्तक को छपने से पहले ही अंग्रेजी सरकार द्वारा इसके भारत व ब्रिटेन में प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कुछ समय पश्चात मदाम भीकाजी कामा के प्रयासों से यह किताब हालैंड में छपी व इसकी कुछ प्रतियां भारत में लाई गयी। इस पुस्तक ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुडे हजारों व्यक्तियों को काफी प्रभावित किया। इस किताब का भिन्न भाषाओं में अनुवाद भी किया गया, पंजाबी व ऊदरू के साथ ही बंगली में इसका अनुवाद स्वंय नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा किया गया।
अपनी अंग्रेजी सरकार विरोधी गतिविधियों के चलते ब्रिटीश सरकार उन्हें गिरफ्तार करने के लिए बेकरार थी। वीर सावरकर को 13 मार्च 1910 को बंदी बनाकर जलयान द्वारा भारत के लिए रवाना कर दिया गया। भारत लाने के दौरान सावरकर अंग्रेज अधिकारियों को चकमा देकर व सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताकर फरार होकर फ्रांस पहुंच गए, लेकिन फ्रांसीसी भाषा नहीं जानने के कारण वह फ्रांसीसी पुलिस को यह नहीं बता सके कि वह शरणार्थी है। फिरंगी पुलिस उन्हं पुन: बंदी बनाकर भारत लाई जहां पर मुकदमे के पश्चात 24 दिसंबर 1910 को उन्हें 50 साल की कैद की सजा सुनाई गयी।
50 साल की सजा मिलने पर उनके अनुयायीयों द्वारा उनकी रिहाई का काफी प्रयास किया गया। सन् 1920 में विठ्ठल भाई पटेल ने सावरकर की रिहाई की मांग करी जिसे महात्मा गांधी व जवाहर लाल नेहरू द्वारा ठुकरा दिया गया।
सावरकर ने हिंदु महासभा का गठन कर हिंदुओं में काफी लेकप्रियता हासिल करी। उन्होंने एक राष्ट्र व एक संस्कृति के आधार पर राष्ट्रीयता का आह्वान करा। 1937 से 1943 तक वे हिंदु महासभा के अध्यक्ष भी रहे। महात्मा गांधी व कांग्रेस का उन्होंने अधिकांशत: विरोध ही किया। गांधी हत्या के आरोपियों गोड़से व नारायण आप्टे से निकटता के चलते सावरकर पर भी गांधी हत्याकांड के तहत मुकदमा चलाया गया किंतु साक्ष्यों के आभाव में उन्हें बरी कर दिया गया।
Wednesday, February 27, 2008
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4 comments:
देश भक्तो को धर्म के आधार पर बाँटना सही नहीं. सावरकर को स्थान मिलना चाहिए उससे वे वंचित है. कॉंग्रेस तो अण्डमान जेल को ही ध्वस्त करना चाहती थी, ताकि स्वतंत्रता आंदोलन उसकी बपौती बना रहे.
पंकज, आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में हार्दिक स्वागत है।
सावरकर केवल हिन्दू हृदय सम्राट ही नहीं थे; वे एक कवि; भाषाविद, शिक्षाविद, इतिहासकार, राजनेता, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, महान वक्ता और समाज-सेवी भी थे।
jऔर कामरेड कैसे हो
अनुनाद जी से पूरी तरह सहमत्… एक प्रखर राष्ट्रवादी थे सावरकर, इसीलिये गाँधी उस समय और कांग्रेस आज तक उनसे डरती है… :)
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