पंकज भारती
कहें तो भारतीय समाज कितना कातर और कमजोर हो गया है, इसका एक घिनौना प्रदर्शन 20 मार्च को हुआ। महाश्वेता देवी जैसी पुण्यात्माओं के सारे निवेदनों-प्रार्थनाओं को खारिज करते हुए भारत सरकार ने तीन महीने नजरबंद रखने के बाद, बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन को रात ढाई बजे लंदन जाते जहाज में ठूंस कर देश से बाहर निकाल दिया। मुस्लिम वर्ग के कुछ लोग तसलीमा से नाराज हैं, इसलिए। कोई देश अपने आत्मसम्मान की ऐसी नीलामी बड़ी आपदा में ही करता है। मार दिये जाने के डर से तसलीमा भारत में रहने के लिए शरण मांग रही थीं। और जिस कोलकाता में वे रहना चाहती थीं, वह कोलकाता उनके लिए कोई गैर नहीं था। 60 साल पहले ही तो जिस ढाका से वे भाग कर आयीं, वह और कोलकाता एक ही सरजमीं थे। और 6000 साल भी बीत जायें तो भी कोलकाता और ढाका की मिट्टी एक ही रहने वाली है। घटनाएं और हुई हैं। म्यनमार में हाल में ही (अभी चल ही रहा है) बौद्ध भिक्षुओं की अगुवाई के जनतंत्र आंदोलन को बर्मी सेना ने गोलियों से रौंद दिया है। पश्चिम के कई देशों ने भले ही जुबान खेाली हो, पर भारत ने ऐसी चुप्पी साधी जैसे बर्मा से उसका कभी कोई नाता ही नहीं रहा हो। मलेशिया में हिंदुओं के साथ जो अत्याचार हुए और अभी भी हो रहे हैं, उन पर भी हमारी कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं हुई। और तो और, तिब्बत में चीन अभी जो हाहाकार मचा रहा है, उस पर भी हम यह सनद पाकर झूम उठे हैं कि चीन ने हमें दलाई लामा के गिरोह का हिस्सा नहीं माना है। श्रीलंका के अंदरूनी संघर्ष पर आज तक हमारी कोई दो टूक राय नहीं बन पायी। बित्ता भर के मालदीव में भी राजनीतिक दल क्यों निर्वसन झेल रहे हैं, और वहां भी इस्लामी कट्टरता कैसे आतंकवाद में बदल गई, इसका भी हम कोई जवाब नहीं ढूंढ़ पाये
Saturday, March 29, 2008
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2 comments:
दुखद है तस्लीमा को भेज दिया जाना।
भारती बिलकुल सही कहिन हैं। सही सवाल उठाए हैं आपने।
एक छोटी-सी बात और कि जब ब्लॉग आपका है, नीचे आपका नाम भी आता है तो ऊपर बोल्ड में अपना नाम अलग से लिखने की जरूरत नहीं है।
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