Friday, September 24, 2010

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में घमासान...



पंकज भारती, इंदौर 9827296250
एशिया का एक मात्र हिन्दी पत्रकारिता को समर्पित विश्वविद्यालय माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में इन दिनों घमासान मचा हुआ है। विश्वविद्यालय के कुलपति बीके कुठियाल व यूटीडी के कुछ विभागाध्यक्षों के मध्य गत कुछ दिनों से चल रही तनातनी अब अपने चरम पर पहुंंच गई है। इसी घटनाक्रम में गुरुवार 23 सितंबर को पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष पीपी सिंग को पद से बर्खास्त कर दिया गया। बताया जाता है कि विभाग की ही एक फैकल्टी श्रीमती ज्योति द्वारा श्री सिंग पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया गया था। कुलपति को की गई अपनी शिकायत में उन्होंने विभागाध्यक्ष पर आरोप लगाया था कि वे उनकी पदोन्नती की फाइल लंबे समय से दबाएं बैठे है। पत्रकारिता विभाग के एचओडी को बर्खास्त किए जाने के विरोध में कई पूर्व व वर्तमान छात्रों ने शुक्रवार 24 सितंबर को धरना प्रदर्शन किया। हालांकि एमसीआरपीवी के भोपाल एमपी नगर स्थित कैंपस में किए गए छात्रों के इस प्रदर्शन को कई लोगों ने प्रायोजित करार दिया।
हंगामा क्यूं बरपा
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार कुलपति बीके कुठियाला की नियुक्ति को लेकर शुरू से ही कुछ लोग नाराज चल रहे थे। सूत्रों के अनुसार, अनुशासन प्रिय और थोड़ा कठोर प्रशासक के रूप में जाने जानेवाले कुठियाला को विश्वविद्यालय में जो चीजें बेतरतीब लगी उन्होंने उसे सही करने का कार्य प्रारंभ किया। वर्षों से सोई हुई व्यवस्था को सुधारने की प्रक्रिया से ही हंगामें की शुरुआत हुई।
क्या छात्र बन रहे मोहरा
जानकारों का कहना है कि अपने निजी हितों को साधने के लिए युवा और नवोदित पत्रकारों का दुरूपयोग किया जा रहा है। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय के दो मुख्य विभाग जिसमें प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक शामिल हैं के एचओडी ने छात्रों को कुलपति हटाओ अभियान में जबरन घसीटा। हुड़दंग मचाते और मुस्कुराते ये छात्र अपनी पढ़ाई भूलकर राजनीति में शामिल हो गए।
सहृदय है सर
कुलपति की कार्रवाही का विरोध करने वाले छात्रों का कहना है कि पत्रकारिता विभाग के एचओडी पीपी सर ने सदैव छात्रों के हित में कार्य किया है। इन छात्रों के अनुसार पीपी सर अपने छात्रों के भविष्य को संवारने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। कार्रवाही के विरोध में दिल्ली, इंदौर, छत्तीसगढ़ के साथ ही देश के अनेक राज्यों की मीडिया में कार्यरत छात्रों का भोपाल में जमावड़ा लगने लगा है।

Saturday, August 14, 2010

आजादी के बाद....



पंकज भारती, इंदौर
ब्रिटेन से 190 साल (1757 से 1947) की लंबी गुलामी के बाद हमारा देश भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद व 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र बना। क्षेत्रफल की दृष्टी से विश्व में सातवां, जनसंख्या में दूसरा व जनसंख्या धनत्व के अनुसार विश्व में प्रथम स्थान हमारा है। 28 राज्यों व 7 केंद्र शासित प्रदेशों के साथ हमारा लोकतंत्र विश्व में सबसे बड़ा माना जाता है। हमारा देश संपूर्ण विश्व के केवल 2.4 प्रतिशत क्षेत्रफल के साथ विश्व जनसंख्या के 17 % भाग को शरण प्रदान करता है। आजादी के समय हम 36 करोड़ थे जबकि आज हम 100 करोड़ के पार है। हमारे देश के 7 कम आय वाले राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान व उत्तर प्रदेश में देश की आधे से अधिक जनसंख्या निवास करती है। इन सबके बावजूद आज हम प्रगति के पथ पर तेजी से अग्रसर हैं, हालांकि बहुत बार हमारी प्रगति के पथ में दुशमनों द्वारा रोड़े अटकाने के प्रयास किए गए लेकिन हम निरंतर अग्रसर है।
हमने अपनी जन्म दर को जो आजादी के समय 40 बच्चे प्रति 1000 व्यक्ति थी उसे नियंत्रित करके आज 22.22 पर ले आंए हैं। वहीं मृत्यु दर भी 27 से घटाकर 6.4 पर आ पहुंची है। अच्छे खान-पान व स्वास्थय के चलते हमारी औसत आयू आज 69.89 वर्ष है जबकि देश की आजादी के समय यह मात्र 37.2 साल थी। यह देश में डॉक्टरों की बढ़ती संख्या से संभव हुआ है। 1950 में 61000 डॉक्टरों व 18500 नर्सो के मुकाबले आज देश में 10 लाख से अधिक डॉक्टर व 12 लाख नर्सें अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है। हम पूर्ण साक्षरता की ओर भी तेजी से बढ़ रहे है। 1947 के 12 प्रतिशत साक्षर व्यक्तियों के मुकाबले आज देश के 67 प्रतिशत लोग साक्षर है।
देश की अर्थव्यवस्था विश्व की पन्द्रह सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। 1991 से भारत में बहुत तेज आर्थिक प्रगति हुई है जब से उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीति लागू की गई है। वर्तमान में भारत विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति के रुप में उभरकर आया है। सुधारों से पूर्व मुख्य रुप से भारतीय उद्योगों और व्यापार पर सरकारी नियंत्रण का बोलबाला था और सुधार लागू करने से पूर्व इसका जोरदार विरोध भी हुआ परंतु आर्थिक सुधारों के अच्छे परिणाम सामने आने से विरोध काफी हद तक कम हुआ है। हलाकि मूलभूत ढाँचे में तेज प्रगति न होने से एक बड़ा तबका अब भी नाखुश है और एक बड़ा हिस्सा इन सुधारों से अभी भी लाभान्वित नहीं हुआ हैं। 50 साल पार के कुछ लोग मुझसे कहते है कि आज की युवा पीढ़ी में देशप्रेम की भावना नहीं है...फलाना-फलाना....लेकिन मेरा यह मानना है कि आज की युवा जनरेशन भी उतनी ही देशभक्त है जितनी हमारे पूर्वज थे। हालांकि अब देश प्रेम की भावना को व्यक्त करने का तरीका बदल गया है लेकिन उसमे कमी नहीं आई है। आजादी की आप सब को बहुत-बहुत बधाई वंदे मातरम।