Monday, April 28, 2008

नजर आ रहा है मुनाफा

पंकज भारती
अमरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की मार, शेयर बाजार बेहाल, देश में मंहगाई दर का लगभग प्रतिदिन नए रिकॉर्ड बनाना आदि के प्रभाव से सरकार के साथ ही व्यापार जगत के तमाम दिग्गजों के माथे पर बल पड़ना स्वाभाविक है लेकिन इन तमाम नकारात्मक बातों के बावजूद व्यापार कॉरपोरेट जगत का एक वर्ग ऐसा है जो इसे लेकर कोई खास परेशान नहीं दिख रहा, और यह वर्ग है विभिन्न उद्योगों के मार्केटिंग प्रमुख।

एक निजी संस्थान की ताजा रिपोर्ट पर यकीन करें तो वैश्विक मंदी के बावजूद मार्केटिंग प्रमुख अधिक विचलित नजर नहीं आते बल्की वह तो इस संकट को अपने लिए बेहतर अवसर के रूप में देख रहे हैं और उनका कार्य भी इसी के अनुरूप है। उन्हें बाजार में मुनाफा नजर आ रहा है इसी कारण उन्होंने अपने विज्ञापन व प्रचार पर खर्च होने वाली धनराशी में गत वर्ष के मुकाबले २७ प्रतिशत तक की बढ़ोतरी करने का फैसला लिया है।

रिपोर्ट के अनुसार देश के दिग्गज मार्केटिंग प्रमुखों को बैकिंग, उपभोक्ता वस्तुओं, ऑटोमोबाइल, दूरसंचार आदि क्षेत्रों में उपभोक्ता गत साल की तुलना में अधिक पैसा खर्च करने की उम्मीद है। यह लोग नई दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु और चैन्नई के उपभोक्ताओं के खर्च को लेकर तो आश्वस्त है हि साथ ही वह यह भी कयास लगा रहे हैं कि इन माहानगरों के साथ ही तेजी से महानगर में तब्दील होते अन्य छोटे शहरों के उपभोक्ता भी दिल खोल कर खर्च करेंगे जिससे इनका मुनाफा मंदी के बावजूद भी कम नहीं होगा।

पिच-मैडिसन एडवर्टाइजिंग आउटलुक के सर्वेक्षण में शामिल लगभग 70 प्रतिशत मार्केटिंग प्रमुखों को लगता है कि मार्केटिंग और विज्ञापन के बजट में उन्हंे कम से कम २क् फीसदी का इजाफा करना पड़ेगा। वहीं ८८ प्रतिशत मार्केटिंग प्रमुखों का मानना हैं कि यह साल गत वर्ष से बेहतर रहेगा।

चढ़ती मंहगाई..

कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, कमोडिटी की कीमतों में उछाल और वैश्विक खाद्य संकट को देखते हुए मंहगाई में तेजी अचरज का विषय नहीं । हालांकि इसमें इस कदर उछाल होगा इसकी उम्मीद नहीं थी। महीने भर के अंदर मंहगाई दर ५ फीसदी से उछलकर ७ फीसदी तक पहुंच गई। इस उछाल ने सरकार, उपभोक्ताओं और अन्य क्षेत्रों को कमजोर स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया।

महंगाई की इस उछाल में खाद्य तेलों, स्टील और लौह अयस्क की बढ़ी हुई कीमतों ने अहम भूमिका निभाई है। वह तो गनीमत है कि सरकार ने कच्चे तेल की चढ़ी कीमतों को पूरी तरह उपभोक्ताओं तक पहुंचने नहीं दिया वरना महंगाई की जो तस्वीर हमें अभी दिखाई दे रही है वह और भी स्याह हो सकती थी। हालांकि इस प्रकार की परिस्थितियों का सामना हमने पहले भी करा है किंतु वर्तमान में मंहगाई की दर में जो तेजी व्याप्त है उसने भय का माहौल बना दिया है।

खाद्य और कमोडिटी की कीमतों में आग लगने की वजह से पूरी दुनिया में महंगाई की दर में तेजी का आलम है। विश्व बैंक समूह का अनुमान है कि खाद्य और ऊर्जा से जुड़ी चीजों की कीमतों में आई भयंकर तेजी की वजह से तकरीबन ३३ देशों में सामाजिक उथल-पुथल की आशंका पैदा हो गई है। हालांकि भारत वैश्विक कीमतों में हो रही बढ़ोतरी से थोड़ा अलग रहा है। इस साल जनवरी से मार्च के दौरान विश्व के बाजारों में गेहूं और चावलों की कीमतों में जबरजस्त उछाल देखने को मिला जिसकी तुलना में भारत में इनका मूल्य उतना नहीं चढ़ा।
उत्पादन की बात की जाए तो साल 2003-2004 से 2007-2008 के मध्य गेहूं के उत्पादन में मात्र 0.9 फीसदी की सालाना वृद्ध दर्ज की गई जबकि इस दौरान हमारी आबादी बढ़ने की दर खाद्य उत्पादन की दर के मुकाबले काफी अधिक रही। इस वजह से गेहूं के बफर स्टॉक में भारी कमी हो गई। इसका नतीजा यह निकल रहा है कि हम धीरे-धीरे आयात पर निर्भर होते जा रहे हैं। खाद्य तेल से जुड़ी फसलों के साथ भी यही बात लागू होती है। वैश्विक स्तर पर आई खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी का असर भारत में मंहगाई की दर पर स्पष्ट देखा जा सकता है। कारण यह है कि सोयाबीन को छोड़कर लगभग सभी वस्तुओं के लिए हम काफी हद तक आयात पर निर्भर है।

मूल्यों में लगी आग को बुझाने के लिए सरकार अनेक प्रकार के उपायों की घोषणा की है। इसके अंतर्गत खाद्य तेलों के आयात पर लगने वाली डच्यूटी में कमी के साथ ही इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। हालांकि इन उपायों का महंगाई की दर पर अधिक व्यापाक असर होता दिखाई नहीं पड़ रहा है। महंगाई की दर में हो रही बढ़ोतरी वैश्विक परिस्थतियों के अलावा लंबे समय तक कृषि की उपेक्षा का नतीजा है। खद्यान की बढ़ती खपत को देखते हुए हमें कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को ध्यान में रखकर नीतियां बनाने की जरूरत है, ताकि इस मामले में आत्मनिर्भरता हांसिल की जा सके।

वैश्विक घाद्य संकट के फिलहाल बने रहने की आशंका है। जब तक खाद्यान में आत्मनिर्भरता हांसिल नहीं की जाती, तब तक कमजोर तबके के लोगों के लिए सब्सिडी और अनाज का वितरण जैसे कार्यक्रम को प्रभावकारी तरीके से चलाया जा सकता है। इस कार्यक्रम की अपनी सीमाओं के बावजूद यह कीमतों को नियंत्रित करने की कवायद से ज्यादा प्रभावकारी होगा।

पंकज भारती

09892403516

उपसंपादक

भास्कर डॉट कॉम, मुंबई

Thursday, April 24, 2008

वायदा कारोबार पर प्रतिबंध अनुचित

पंकज भारती.
खाद्य उत्पादों के भावों में लगी आग के लिए इसमें जारी वायदा कारोबार को देष देना बिलकुल अनुचित है। कमोडिटी के भावों में जारी वर्तमान तेजी वायदा कारोबार के कारण नहीं बल्की इन खाद्य पदार्थो के उत्पादन में आयी कमी के कारण है। वायदा कारोबार से तेा किसानों को फायदा ही पहुंचता है, उन्हें इसके माध्यम से यह तो पता चल ही जाता है कि उनकी फसल को कारोबारी किस भाव पर लेना चाह रहे है या उस फसल का वायदा कारोबार में क्या भाव चल रहा है जिससे वह उसे उचित कीमत पर हाजिर बाजार में बेंच सके। वायदा कारोबार से किसान जागरुक हुआ है अब वह अपनी फसल औने पौने दाम पर व्यापारियों को नहीं बेचता।
वायदा कारोबार के प्रभाव के अध्यन के लिए जिस सेन कमेटी की रिपोर्ट का सरकार इंतजार कर रही है उसी के सदस्यों के द्वारा किए गए स्टडी के अनुसार फ्यूचर ट्रेडिंग और खुदरा भावों में कोई रिश्ता नहीं है। कमेटी के अधिकांश सदस्यों की राय तो यह है कि गेहूं , चावल, अरहर और उडद के वायदा कारोबार पर लगी रोक हटानी चाहिए। तथा किसानों को वायदा कारोबार से ज्यादा से ज्यादा जोडा जाए ताकि कमोडिटी एक्सचेंजों के जरिए उन्हंे फसल के अच्ठे दाम मिल सके।
मौजूदा वायदा कारोबार में एक्सचेंज पर सबसे छोटा कांट्रेक्ट 10 टन का होता है। इसे सरकार और छोटा आकार दे सकती है जिससे छोटे किसान भी एक्सचेंज पर फसल बेंच सके। महंगाई के नाम पर वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाना अनुचित रहेगा। वैसे सरकार ने महंगाई पर लगाम लगाने के लिए पिछले साल गेहूं सहित कुछ दालों व चावल के वायदा कारोबार पर रोक लागाई थी , लेकिन पिछले एक साल में तुअर दाल और चावल महंगे ही हुए है। गेहूं की कीमते भी बढ़ी है। हां उडद दाल जरुर थोडी सस्ती हुई है। अगर वायरा कारोबार से भाव चढ़ते तो चीनी के भाव भी चढ़ने चाहिए थे क्योंकि इसमें वायदा कारोबार चालू है। इसी प्रकार खाद्य तेलो के वायदा कारोबार को रोकने से इसकी कीमतोंे पर कोई प्रभाव पडने वाला नही है। क्योंकि देश में खाद्य तेलो की कुल मांग के आधे से अधिक हिस्से की आपूर्ति आयातित तेलो से होती है। वैसे भी घरेलू बाजार में पॉम तेल की कीमते मलेशिया व सोया तेल के भाव अमेरिका से प्रभावित रहते है।
फिलहाल अगर जरूरी चीजो के वायदा कारोबार पर रोक लगाई जाती है तो एक्सचेंज का कारोबार घटकर आधा रह सकता है। क्योंकि कमोडिटी एक्सचेंजों के कारोबार में चीनी, चना, सोयाबीन और रिफांइड सोया के साथ ही मक्का की खासी हिस्सेदारी है।
पंकज भारती. 09892403516

Sunday, March 30, 2008

सहवाग का कारनामा

पंकज भारती, इंदौर
देश में एक से बढ़कर एक क्रिकेट खिलाड़ी हुए हैं, पर जैसा जज्बा वीरेंद्र सहवाग ने दिखाया वह काबिले तारीफ है। हाल की उनकी ३१९ रनों की आतिशी पारी उनक ी बड़ी पारियां खेलने की क्षमता ही दर्शाती है। यह सच है कि पहले सहवाग को टेस्ट मैचों की जगह एकदिनी का ही बेहतरीन खिलाड़ी माना जाता था, पर उनके टेस्ट के पचास से ऊपर के औसत और दो-दो तिहरे शतकों को देखते हुए अब यह कोई भी नहीं कह सकता कि सहवाग केवल एक दिवसीय मैचों के उपयोगी खिलाड़ी हैं। गौरतलब बात यह है कि उन्होंने हालिया तिहरा शतक ऐसे समय लगाया है जब उनके टीम में चयन को लेकर परस्पर विरोधी बातें की जा रही थीं। इस प्रदर्शन से सहवाग ने अपने विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दिया है, जो उन्हें चुका हुआ खिलाड़ी बता रहे थे। सहवाग का फॉर्म में वापस आना देश की क्रिकेट टीम के लिए जहां एक खुशखबरी है, वहीं विपक्षी टीमों के लिए खौफ जगाने वाली बात है।

अपेक्षित रवैया

पंकज भारती, इंदौर

शिक्षा के क्षेत्र में सिर्फ पूरे प्रदेश ही नहीं देश में इंदौर का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां के स्कूल-कॉलेजों से निकले विद्यार्थी देश-विदेश में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं लेकिन यह जानकर आश्चर्य होता है कि सरकार के पास नए शिक्षण संस्थानों की स्थापना के लिए जमीन उपलब्ध नहीं है जब वह बड़े औद्योगिक घरानों होटल, मॉल बनाने के लिए करोड़ों की जमीन उपलब्ध करा रही है। शैक्षणिक संस्थाओं के विस्तार के प्रति सरकार का रवैया व्यावसायिकता दर्शाता है। अब इंदौर में आईआईटी खुलने जा रहा है। अगर सरकार का यही उपेक्षित रवैया रहा है यहां कैसे नए शैक्षणिक संस्थान शुरू होंगे।

Saturday, March 29, 2008

जवाब नहीं ढूंढ़ पाये.....

पंकज भारती

कहें तो भारतीय समाज कितना कातर और कमजोर हो गया है, इसका एक घिनौना प्रदर्शन 20 मार्च को हुआ। महाश्वेता देवी जैसी पुण्यात्माओं के सारे निवेदनों-प्रार्थनाओं को खारिज करते हुए भारत सरकार ने तीन महीने नजरबंद रखने के बाद, बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन को रात ढाई बजे लंदन जाते जहाज में ठूंस कर देश से बाहर निकाल दिया। मुस्लिम वर्ग के कुछ लोग तसलीमा से नाराज हैं, इसलिए। कोई देश अपने आत्मसम्मान की ऐसी नीलामी बड़ी आपदा में ही करता है। मार दिये जाने के डर से तसलीमा भारत में रहने के लिए शरण मांग रही थीं। और जिस कोलकाता में वे रहना चाहती थीं, वह कोलकाता उनके लिए कोई गैर नहीं था। 60 साल पहले ही तो जिस ढाका से वे भाग कर आयीं, वह और कोलकाता एक ही सरजमीं थे। और 6000 साल भी बीत जायें तो भी कोलकाता और ढाका की मिट्टी एक ही रहने वाली है। घटनाएं और हुई हैं। म्यनमार में हाल में ही (अभी चल ही रहा है) बौद्ध भिक्षुओं की अगुवाई के जनतंत्र आंदोलन को बर्मी सेना ने गोलियों से रौंद दिया है। पश्चिम के कई देशों ने भले ही जुबान खेाली हो, पर भारत ने ऐसी चुप्पी साधी जैसे बर्मा से उसका कभी कोई नाता ही नहीं रहा हो। मलेशिया में हिंदुओं के साथ जो अत्याचार हुए और अभी भी हो रहे हैं, उन पर भी हमारी कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं हुई। और तो और, तिब्बत में चीन अभी जो हाहाकार मचा रहा है, उस पर भी हम यह सनद पाकर झूम उठे हैं कि चीन ने हमें दलाई लामा के गिरोह का हिस्सा नहीं माना है। श्रीलंका के अंदरूनी संघर्ष पर आज तक हमारी कोई दो टूक राय नहीं बन पायी। बित्ता भर के मालदीव में भी राजनीतिक दल क्यों निर्वसन झेल रहे हैं, और वहां भी इस्लामी कट्टरता कैसे आतंकवाद में बदल गई, इसका भी हम कोई जवाब नहीं ढूंढ़ पाये

Monday, March 17, 2008

साहसिक कदम उठाना होगा

पंकज भारती , इंदौर

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख द्वारा जो क्षेत्रवाद का जहर फैलाया जा रहा है वह देश के लिए घातक है। संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत सभी नागरिकों को स्वतंत्रता का मूल अधिकार है । भारतीय नागरिक देश में कहीं भी रह सकता है, कहीं भी काम-धंधा, व्यापार-व्यवसाय कर सकता है। इसी तरह धर्म, वंश जाति, जन्मस्थान आदि के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव निषिद्ध है। इसके मद्देनजर सेना द्वारा किया जा रहा भेदभाव असंवैधानिक है। सेना प्रमुख राज ठाकरे उत्तरभारतीयों को महाराष्ट्र छोड़ने के लिए बाध्य कर रहे हैं। अपने इरादों को अंजाम देने के लिए उनके समर्थक हिंसा का सहारा ले रहे हैं। यह देश को तोड़ने का कुत्सित प्रयास है। ऐसी भावना अन्य क्षेत्रों में भी बलवती हो सकती है जिससे देश का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जाएगा। विघटनकारी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देना होगा। सरकार को कोई ढील-पोल नहीं बरतना चाहिए, चाहे वोट बैंक छिटक जाए या सरकार गिर जाए। देश से बड़ा कुछ नहीं है। केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को साहसिक कदम उठाना ही होगा।

Sunday, March 2, 2008

भारत विरुद्ध इंडिया...

पंकज भारती
गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहे भारत के किसान की सुध आखिर केंद्र सरकार ने अब ली है। किसान को न फसल का उचित मूल्य मिल रहा था और न ही खाद और बीज। जब किसान आत्महत्या तक को मजबूर हो, ऐसे कठिन समय में साठ हजार करोड़ के कर्ज माफ करना उसके लिए राहत की बात है। मौसम की बेरुखी, घटते पूंजी-निवेश और मुख्य फसलों की पैदावार में गिरावट को कृषि क्षेत्र की बदहाली की वजह माना जा रहा है। लागत की अधिकता और मुनाफे में कमी के कारण भी लोग इस क्षेत्र से अलग हो रहे हैं। आर्थिक विकास दर भले ही पौने नौ फीसदी हो, लेकिन अभी भी देश की तीस करोड़ आबादी के पास दिनभर के लिए मात्र 12 रुपए हैं।

देश मुख्यत: दो भागों में बंट गया है- इंडिया(अमीर) और भारत(गरीब)। इंडिया में 535 परिवार ऐसे हैं जिनके पास सौ करोड़ से अधिक की संपत्ति है। बेरोजगारी फिर भी बढ़ रही है क्योंकि इंडिया और अमीर होता जा रहा है तथा भारत अभी भी गरीब है। खाद्य वस्तुएं दिन प्रतिदिन महंगी होती जा रही हैं। क्या इंडिया और भारत कभी बराबर हो पाएंगे?

सचिन दा जवाब नहीं

पंकज भारती , इंदौर

ऑस्ट्रेलिया में सचिन पूर्व के कुछ मैचों में अपनी लय नहीं पकड़ पाए, तो आलोचकों की जबान उनके बारे में अनाप-शनाप कहने लगीं। सचिन खामोश रहे। हमेशा उन्हें ब्रेडमैन की उपमा देने वाला मीडिया भी सचिन पर तमाम तोहमतें लगाने से नहीं चूका। यही नहीं महेंद्रसिंह धोनी की बातों को भी तोड़-मरोड़कर मीडिया ने पेश किया। एक कप्तान होने के नाते धोनी का सचिन को चेताना जरूरी था, लेकिन दूसरे लोगों ने सचिन पर सिर्फ तोहमतें लगाईं।

इतना सब सुनने के बाद भी सचिन की महानता सिद्ध हुई, उन्होंने बाद के दो मैंचों में लोगों की आलोचनाओं का जवाब अपने बल्ले से दिया। पहले श्रीलंका को धूल चटाने में अहम भूमिका निभाई और सिडनी में हुए पहले फायनल मुकाबले में सैंकड़ा ठोककर कंगारूओं को ही नहीं, दुनिया को जता दिया कि यह शेर अभी बूढ़ा नहीं हुआ। सचिन क्रिकेट खेलें या न खेलें लेकिन दुनिया उनकी सहनशीलता से सबक जरूर लेती रहेगी।

सचिन देश और दुनिया के तमाम युवाओं के लिए आदर्श हैं। सिडनी से पूर्व भी सचिन की महानता कई बार देखने को मिली है। शतक बनाने के बाद भी शांति से ईश्वर का धन्यवाद देना और अगली बॉल को फिर उसी तरह से खेलना जैसे कुछ उपलब्ध ही नहीं किया हमें यह भी सिखाता है कि पुरानी सफलता को विस्मृत कर व्यक्ति को नए कीर्तिमान पर ध्यान देना चाहिए और इसी सिद्धांत पर चलते हुए वे कई रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करवा चुके हैं। वाकई सचिन एक जेंटलमैन क्रिकेट प्लेयर और महान व्यक्तित्व हैं।

Wednesday, February 27, 2008

हिंदु हृदय सम्राट: विनायक दामोदर सावरकर

पंकज भारती

पुण्यतिथी २६ फरवरी पर विशेष
महान स्वतंत्रता सेनानी, हिंदुत्व के पैरोकार और एक राष्ट्र व एक संस्कृती के प्रणोता के रूप में वीर विनायक दामोदर सावरकर नाम उभरकर आता है। आजादी के महायज्ञ में आहूतियां देने वाले हजारों वीरों के मध्य विनायक दामोदर सावरकर का नाम एक अहम स्थान रखता है। हालांकि अपनी कट्टर हिंदुवादी विचारधारा के साथ ही कांग्रेस और महात्मा गांधी के विचारों से अधिकांशत: असहमति के कारण अनेक इतिहासकारों व विचारकों ने उनके कार्यो को कम करके आंका, किंतु इससे आजादी के महायज्ञ में उनके योगदान की अहमियत कम नहीं हो जाती। अपने जिवन का अधिकांश समय अंडमान की जेल में काटने वाले सावरकार संभवत: प्रथम हिंदुवादी राजनेता के रूप में सामने आए। महात्मा गांधी हत्या कांड के आरोपी गोड़से व नारायण आप्टे से संबंधों के चलते वीर सावरकर पर भी गांधी हत्या का मुकदमा चलाया गया किंतु साक्ष्यों के आभाव के चलते उन्हे बरी कर दिया गया।

२८ मार्च १८८३ को नासीक के निकट एक जागीरदार परिवार में जन्में विनायक दामोदर सावरकर अपनी बाल्यावस्था से ही तंत्रता आंदोलनों में सक्रिय हो गए थे। स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग व विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार पर इन्होंने विशेष बल दिया। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अपने युवा मित्र मंडली के साथ इन्होंने विदेशी उत्पादों की होली जलाई। 1906 में कानून के अध्यन के लिए वे स्कॉलरशिप प्राप्त कर लंदन रवाना हुए। वहां पर उन्होंने इंडिया हाउस से जुड़कर सवतंत्रता आंदोलन की मशाल थामे रखा।

सन् 1908 में सावरकर द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास नामक पुस्तक की रचना की गयी, जिसमें उन्होंने 1857 की क्रांति को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बताया। इस पुस्तक को छपने से पहले ही अंग्रेजी सरकार द्वारा इसके भारत व ब्रिटेन में प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कुछ समय पश्चात मदाम भीकाजी कामा के प्रयासों से यह किताब हालैंड में छपी व इसकी कुछ प्रतियां भारत में लाई गयी। इस पुस्तक ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुडे हजारों व्यक्तियों को काफी प्रभावित किया। इस किताब का भिन्न भाषाओं में अनुवाद भी किया गया, पंजाबी व ऊदरू के साथ ही बंगली में इसका अनुवाद स्वंय नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा किया गया।

अपनी अंग्रेजी सरकार विरोधी गतिविधियों के चलते ब्रिटीश सरकार उन्हें गिरफ्तार करने के लिए बेकरार थी। वीर सावरकर को 13 मार्च 1910 को बंदी बनाकर जलयान द्वारा भारत के लिए रवाना कर दिया गया। भारत लाने के दौरान सावरकर अंग्रेज अधिकारियों को चकमा देकर व सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताकर फरार होकर फ्रांस पहुंच गए, लेकिन फ्रांसीसी भाषा नहीं जानने के कारण वह फ्रांसीसी पुलिस को यह नहीं बता सके कि वह शरणार्थी है। फिरंगी पुलिस उन्हं पुन: बंदी बनाकर भारत लाई जहां पर मुकदमे के पश्चात 24 दिसंबर 1910 को उन्हें 50 साल की कैद की सजा सुनाई गयी।
50 साल की सजा मिलने पर उनके अनुयायीयों द्वारा उनकी रिहाई का काफी प्रयास किया गया। सन् 1920 में विठ्ठल भाई पटेल ने सावरकर की रिहाई की मांग करी जिसे महात्मा गांधी व जवाहर लाल नेहरू द्वारा ठुकरा दिया गया।

सावरकर ने हिंदु महासभा का गठन कर हिंदुओं में काफी लेकप्रियता हासिल करी। उन्होंने एक राष्ट्र व एक संस्कृति के आधार पर राष्ट्रीयता का आह्वान करा। 1937 से 1943 तक वे हिंदु महासभा के अध्यक्ष भी रहे। महात्मा गांधी व कांग्रेस का उन्होंने अधिकांशत: विरोध ही किया। गांधी हत्या के आरोपियों गोड़से व नारायण आप्टे से निकटता के चलते सावरकर पर भी गांधी हत्याकांड के तहत मुकदमा चलाया गया किंतु साक्ष्यों के आभाव में उन्हें बरी कर दिया गया।

Monday, February 25, 2008

पीढ़ियां संवारने वाले सर सेठ हुकुमचंद

पंकज भारती
26 फरवरी को सर सेठ हुकुमचंद की पुण्यतिथि पर विशेष
माता अहिल्या की तरह शहर का नाम रोशन करने वाले स्व. सर सेठ हुकुमचंद ने शहर में टेक्सटाइल उद्योग की स्थापना कर हजारों मजदूरों की रोजी-रोटी की व्यवस्था की थी। इंदौर की वर्तमान रौनक में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। क्लॉथ मार्केट की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शेयर्स के व्यापार में अमेरिका तक उनका प्रभाव रहा।

सेठजी स्वयं के लिए नहीं जिए, उन्होंने समाज के लिए जितना किया और जितना दिया उसे भुलाया नहीं जा सकता है। शहर में कांच मंदिर, नसिया में मंदिर और धर्मशाला के साथ ही श्राविकाश्रम का निर्माण कर उन्होंने महिलाओं के उद्धार के लिए भी काम किया। शिक्षा के क्षेत्र में संस्कृत महाविद्यालय की भी स्थापना की। उनके द्वारा बनाए गए छात्रावास में पढ़े विद्यार्थी आज भी देश-विदेश में उनकी यशगाथा गा रहे हैं।

भारत के करीब सभी तीर्थो में किसी न किसी रूप में उनका नाम अवश्य मिलेगा। यदि हमने परिवार संवारे हैं तो उन्होंने पीढ़ियां संवारी हैं। उनके रंगमहल में हाथी-घोड़े, बग्घी और सोने की कार सहित ऐशो आराम के कई साधन थे। स्व. सेठजी के जीवन से यह संदेश मिलता है कि यह महत्वपूर्ण नहीं कि किसने कितना कमाया बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि समाज के लिए किसने कितना योगदान दिया। स्व. सर सेठ हुकुमचंद की पुण्यतिथि पर सादर प्रणाम और विनम्र श्रद्धांजलि।

Tuesday, February 5, 2008

गौरवशाली लोकतंत्र के युवा सारथी

पंकज भारती

२६जनवरी पर विशेष.
नियती से किया हुआ वादा जब सच हुआ और आजादी के पंख लिए एक गौरवशाली भारतीय लोकतंत्र की यात्रा के छह दशक उस सुनहरें सपने की अभिव्यक्ति है। नियती से किया हुआ हर वादा सौ करोड़ भारतीयों ने सच किया है और पूरे दिल से जम्मू से कन्याकुमारी तक हर भारतीय देश की एकता अंखडता और उसके स्वाभिमान की रक्षा के लिए तत्पर है।

अपनी एकता, अखंडता और सांस्कृ तिक व नैतिक मूल्यों को सहेजकर पूरी हुई लगभग ६ दशकों की यात्रा में भारत के लोकतंत्र ने संपूर्ण दुनिया के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया है। हालांकि इस यात्रा के दौरान ऐसे कई मुकाम आए जब हमारे लोकतंत्र पर संकट के बादल छाए लेकिन हर बार हमने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति व आत्मविश्वास के बल पर न सिर्फ लोकतंत्र विरोधी ताकतों को हराया बल्कि और अधिक मजबूती के साथ अपने आपको स्थापित किया।

54 फीसदी से अधिक युवाओं वाले देश में आज भले ही आजादी की लड़ाई के मूल्य तनिक धुंधले दिखलाई पड़ते हो तथा बदलते दौर में राष्ट्रीय पर्व महज औपचारिकता बनकर रह गए हो लेकिन सच तो यह है कि हमारी युवा शक्ति आज भी अपने देश को उसी जज्बे से प्यार करती है जिसका सपना हमारे नायकों ने देखा था। आजादी की जंग में अपना सर्वस्व निछावर करने वाले नौजवानों का सपना आज भी हम अपनी मौजूदा युवा पीढ़ी की आंखों में देख सकते हैं।

सही है कि आज हमारा प्रशासनिक व राजनैतिक तंत्र लगभग संवेदनाहीन की स्थिती में पहुंच गया है इसके बावजूद देश के नागरिकों का संविधान में विश्वास बना हुआ है। यह संविधान में विश्वास का ही परिणाम है कि नैना साहनी व जाहिरा शेख जैसे मामलों में अंतत: गुनाहगारों को सजा प्राप्त हुई।
आज हम हर क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहे है, युवा उद्यमियो, कलाकारों, खिलाड़ियों आदि ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन के बल पर संपूर्ण विश्व को अचंभित कर दिया है। यही कारण है कि सांप, साधू व सपेरों से पहचाने जाने वाला हमारा देश दुनिया के सामने एक तेजी से बढ़ते हुए प्रगतिशील व आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आया है।

भारी तादाद में युवाओं से सुसज्जित देश अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अब किसी भी सीमा को तोड़ने के लिए तत्पर है। हमारे सामने एक प्रयोगधर्मी और प्रगतिशील पीढ़ी खड़ी है जिस पर सारी दुनिया विस्मित है। आज हमारे देश की तरफ संसार बड़ी उम्मीद से देख रहा है और हम जिस तेज गति से विकासमान है उसे देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी जब विकसित राष्ट्रो में शुमार होंगे ।

संविधान लागू होने के ५८ वर्षो के बाद भी हमारे सामने कुछ ऐसी समस्यायें मुंह उठाए खडी हैं जो हमारे लोकतंत्र के विपरीत हैं तथा इसे कमजोर करने को आतुर हैं। कई स्तरों पर विभाजित समाज में भाषा, जाति, धर्म और प्रांतवाद की तमाम दीवारें हैं जिनमें से कई का निमार्ण तो हमने स्वयं ही किया है। वर्तमान में हमारे सामने वहीं सवाल मुंह उठाए खड़े हैं, जिनके चलते देश का बटवारा हुआ था और महात्मा गांधी जैसी विभूतियां भी इस बटवारे को रोक नहीं पाई। देश के अनेक हिस्सों में चल रहे अतिवादी आंदोलन चाहे वो किसी भी नाम से चलाये जा रहे हो अथवा किसी भी विचारधारा से प्रेरित हो सबका उद्देशय भारत की प्रगति मार्ग में रोड़े अटकाना ही है। हमें इन चुनोतियों का सामना मिलजुल कर करना होगा और बदलाव की उम्मीद 54 फीसदी युवाओं से करनी ही होगी । वक्त पुकार रहा है एक ऐसे सपने को साकार करने का जो हम सबका हक है और देश के अमन चैन को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को जबाब देना ही होगा ।

लोकतंत्र को सार्थक करने के लिए हमें साधन- संपन्न व हाशिये पर खड़े लोगों को एक स्तर पर देखना होगा, क्योंकि लोकतंत्र तभी सार्थक है जब वह हिंदुस्तान के प्रत्येक व्यक्तियों को समान विकास के अवसर उपलब्ध करवाये। संविधान सभी के लिए समान है यह बात सिर्फ नारों में नहीं व्यवहार में भी दिखनी चाहिए। हमें राम मनोहर लोहिया की यह बात ध्यान रखनी चाहिए की लोकराज लोकचाल से चलता है। महात्मा गांधी ने भी समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति को भी वही अवसर व सुविधांए प्रदान करने की बात कहीं जो समाज के प्रथम व्यक्ति को प्राप्त है।

प्रगति व विकास के सूचकांक तभी सार्थक हैं जब वे आम आदमी के चेहरे पर मुस्कान लाने में समर्थ हो। देश के तमाम वंचित लोगों को छोड़कर हम अपने सपनों को सच नहीं कर सकते तो आईये गणतंत्र के इस पावन अवसर पर हम अपने देश को सुदृढ़ करने व विकास की राह पर निरंतर प्रगतिशील रखने की प्रतिज्ञा करें।


मेरा यह लेख भास्कर डॉट कॉम में 26 जनवरी 2008, को गणतंत्र दिवस विषेश में प्रकाशित हो चुका है। अति व्यस्तता के चलते मैं इसे अपने ब्लॉग पर अपलोड नहींे कर सका, यह कार्य में आज दिनॉक को संपन्न कर रहा हूॅं। यहां भास्कर डॉट कॉम की लिंक भी दे रहा हूं जिस पर क्लिक करके आप यह लेख भास्कर में भी पढ़ सकते है।

http://www.bhaskar.com/2008/01/26/0801260346_india_republic_day.html

Saturday, January 19, 2008

चचचचचचचचचचचचक .... दिया

टीम इंडिया ने दिया मुंह तोड़ जवाब

पंकज भारती
पर्थ में हुई 'सदाचार और दूराचार की जंग' में अंतत: भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 72 रन से हरा कर उसका गुरूर चकनाचूर कर दिया। वाका की उछाल भरी गेंदपट्टी पर अनिल कुंबले की बेहतरीन कप्तानी व जोश और उत्साह से भरपुर युवाओं की घातक गेंदबाजी के आगे कंगारू घुटने टेकने को बाध्य हो गए।

सिडनी में खराब अंपायरिंग व ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के खेल भावना के विपरीत व्यवहार को झेल चुकी टीम इंडिया ने जीत की जिद्द के साथ खेलते हुए पर्थ में तिरंगा तो फहराया ही साथ ही साथ आस्ट्रेलिया के लगातार 17 टेस्ट जीतने का सपना भी तोड़ डाला। ऑस्ट्रेलियाई धरती पर भारत की यह पांचवीं टेस्ट जीत है। टीम इंडिया की जीत में इरफान पठान का ऑलराउंड प्रदर्शन उल्लेखनीय है।

टीम की जीत का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि मेलबर्न व सिडनी टेस्ट दोनों टेस्ट में आस्ट्रेलिया टीम ने स्लेजिंग के जरीए ही विजय हासिल करी थी और यहां भी वह लगातार स्लेजिंग के जरिए टीम इंडिया पर दबाव बना रही थी। वहीं हरभजन सिंह पर नस्लभेद की तलवार लटकने के बावजूद भारतीय टीम ने एकजुट होकर खेली व विजय श्री प्राप्त करी।

दूसरी ओर भारतीय कप्तान अनिल कुंबल ने ऑस्ट्रेलियाई स्पिनर ब्रेड हॉग पर अभद्रता का आरोप भी सोची समझी रणनीति के तहत वापस ले लिया जिसका नैतिक दबाव पर्थ में कंगारुओं के व्यवहार पर साफ दिखाई दिया।

Friday, January 11, 2008

क्या हे 12 जनवरी को ?

पंकज भारती
रोज डे, चाकलेट डे, ब्लेक एंड व्हाईट डे के साथ ही वेलेंटाईन डे और फ्रेंडशिप डे जैसे ना जाने कितने डे है जिनका प्रचलन आज कल बड़ी तेजी के साथ फैल रहा है, विशेषकर हमारी नैजवान पीढ़ी में इन विभिन्न प्राकर के दिवसों को सेलिब्रेट करने का क्रेज काफी अधिक है।
वैसे देखा जाए तो संपूर्ण विव्श्र में प्रत्येक दिन कोई ना कोई दिवस अवश्य मनाया जाता है। भारत भी इसी राह पर चल रहा है इसमें कोई गलत बात नहीं है, लेकिन खेद की बात यह है कि आज की युवा पीढ़ी भारतीय दिवसों के बार में लगभग अज्ञानता की स्थिती में है। यदि युवाओं से पूछा जाए की 12 जनवरी को कौन सा दिवस मनाया जाता है तो 50 फीसदी लोग सर खुजाने लगते है। एैसे कितने लोग हैं जो यह जानते है कि स्वामी विवेकानंद का जन्म दिवस 12 जनवरी राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है । बाजारीकरण के इस दौर में इन विभिन्न दिवसों पर जिनमें से अधिकांश तो पश्चिम की देन हैं को भुनाने के लिए कंपनियां तरह तरह के उपहार व कार्ड बाजार में उतारती है व उनका इस प्राकार से प्रचार करती है कि इन दिवसों को मनाए बिना युवाओं का अस्तित्व ही खतर में पड़ जाएगा। आज के युवा इन दिनों के महत्व को समझने की जहमत नहीं उठाते और आसानी से बाजारीकरण की भेंट चढ़ जाते है।
गुलाम हिंद के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक ओर नैतिक उत्थान के लिए भागीरथ प्रयास करने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 के दिन बंगाल में हुआ था । उनहोने अपने 39 वर्ष के जीवन काल में भारत के युवांओ को एक सच्ची राह दिखाई । उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने उनके जीवन काल में थे। उनका मानना था कि युवा ही देश को प्रगति की राह पर अग्रसर करेंगे।
उन्होनें युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था कि वे राम नाम की माला जपने के बदले व्यायाम व खेल-कूद के द्वारा अपने शरीर को शक्तिशाली बनाएं ताकी वे हिंदुस्तान को जल्द से जल्द आजाद करवा सकें। उनके ओजस्वी विचारों ने अनेक राष्ट्रवादीयों, समाजसुधारक और सामाजिक कार्यकारों को प्रेरणा दी।
लेकिन देश की आजादी के पश्चात नेताओं ने देश भावना का त्याग कर लोगों के अंदर भेदभाव और जातिवाद का जहर भर दिया। जिसके कारण भारत का युवा धन भ्रमित हो गया। आज देश को एक स्वामी विवेकानंद की सख्त जरुरत है जो देश की युवा शक्ति को सही दिशा में ले जाए।
आज का युवा अपने कायरें को सही दिशा देकर अपना व अपने राष्ट्र दोनों का नाम रोशन कर रहा है। राजनीति हो या खेल आज देश के युवा हर क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान अदा कर रहा है। राहुल गांधी, सचिन तेंडुलकर, महेन्द्रसिंह धोनी,चेतन भगत, सानिया मिर्जा, विव्श्रनाथन आनंद, लिएंडर पेस और नारायण कार्तिकेयन जैसे न जाने कितने युवा अपनी क्षमता का प्रमाण प्रस्तुत कर रहे हैं।

Sunday, January 6, 2008

हार गया क्रिकेट

अंपायरिंग के लिहाज से चुक चुके बुजुर्ग बकनर आज एशिया उपमहाद्वीप के लिए खलनायक बन गए हैं। सिडनी टेस्ट मैच के पहले दिन 134 रन के स्कोर पर ही छह विकेट गंवाकर संकट में पड़ी कंगारू टीम के लिए अंपायर एक-दो बार नहीं बल्कि आधा दर्जन से ज्यादा बार संकटमोचक बने। पहली पारी में साइमंड्स को तीन बार और पोंटिंग को दो बार बल्लेबाजी करने का मौका देकर उन्होंने भारत से जीती हुई बाजी छीनने का जो सिलसिला शुरू किया वह मैच खत्म होने तक जारी रहा। मैदानी अंपायर के गलत फैसले की बात तो किसी तरह गले भी उतरती है, लेकिन टीवी के सामने बैठा थर्ड अम्पायर भी गलती करे तो क्या कहा जाए? आस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में अंपायरों की मेहरबानी शतकवीर माइकल हसी पर हुई। अंतिम दिन तो द्रविड़, गांगुली सहित तीन भारतीय बल्लेबाज मनमानी के शिकार बने। सुनील गावसकर और स्टीव वॉ जैसे दिग्गज खिलाड़ी भी इन फैसलों से व्यथित नजर आए। सिडनी टेस्ट के परिणाम से कई ऐसे सवाल उठ खड़े हुए हैं जिनका जवाब देना आईसीसी के लिए टेड़ी खीर हो सकता है। बकनर की छवि भारतीयों के खिलाफ पूर्वाग्रहग्रस्त फैसले देने की रही है, फिर भी भारतीय टीम प्रबंधन द्वारा कई बार दर्ज कराई गई आपत्तियों के बावजूद उन्हें मैच की जिम्मेदारी सौंपी गई। वल्र्डकप 2007 में बकनर के गलत फैसलों के मद्देनजर कई पूर्व खिलाड़ियों ने तो साफ कहा था कि या तो वे खुद रिटायर हो जाएं या आईसीसी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दे। इसके बावजूद वे अंपायरों के एलीट पैनल में शामिल हैं। वक्त आ गया है कि आईसीसी अंपायरिंग का स्तर सुधारने के लिए सख्त कदम उठाए वरना खेल मजाक बनकर रह जाएगा। साथ ही, नजदीकी फैसलों में तकनीक के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। टीम इंडिया ने खराब अंपायरिंग के विरोधस्वरूप पुरस्कार वितरण का बहिष्कार कर बिलकुल ठीक किया है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भी इस मामले को पूरी गंभीरता के साथ आईसीसी के साथ उठाना चाहिए और आईसीसी को मैच रेफरी को विवादास्पद या गलत फैसलों के मामले में दखल देने का अधिकार देने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। - पंकज भारती

अंपायर: नायक नहीं खलनायक

आखिरवहीं हुआ जिसका डर था, भारत सिडनी टेस्ट 122 रनों से हार गया लेकिन भारत की यह हार उसकी खराब बल्लेबाजी के चलते नहीं हुई बल्की अंपायरों की
घटीया अंपायरिंग व विरोधी खिलाडीयों के खेल भावना के विरुद्ध कि ए गए व्यवहार के कारण हुई हैं। जाहिर सी बात हैं कि सिडनी टेस्ट में भारत की नहीं बल्की
संपूर्ण क्रिकेट जगत की हार है । सिडनी टेस्ट के प्रारंभ से लेकर अंत तक अंपायरिंग के क्षेत्र में जो कुछ घटा वह निहायत ही शर्मनाकपूर्ण व झकझोरदेने वाला रहा। संपूर्ण मैंच के दौरान नौ बार जी हां
नौ बार आस्ट्रेलिया खिलाडीयों के पक्ष में फैसला दिया गया। एंड्रु सायमंड को तेा चार बार आउट होने के बावजूद नाटआउट करार दिया गया। सिर्फ सायमंड ही नहीं
पोंटीग के साथ ही अन्य आस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को अंपायर स्टीव बकनर के साथ ही मार्क बेंसन ने जैसे अभयदान दे दिया हो। लगता है अंपायरों व आस्ट्रेलियाई की आपस में साठ-गांठ रही होगी जिसके चलते इन खिलाडीयों को कहा गया की आप चाहे जैसे खेल सकते है आपके आउट होने पर भी आपको हमार
आउट करार नहीं दिया जाएगा।
वहीं भारतीय खिलाडीयों के साथ इसका उलटा हो रहा था। चाहे वो गेंदबाज हो अथवा बल्लेबाज सभी अंपायर के गलतनिर्णय के शिकार बने। पहली पारी में जब ईशान शर्मा की गेंद सायमंड का बल्ला चुमते हुए धोनी के दस्तानों में जा समाई तब स्टेडियम में बैठे हजारों दर्शकों को गेंद व बल्ले के मिलन की आवज साफ सुनाई दी जबकि यही आवाज दोनों बेशर्म अंपायरों को सुनाई नहीं दी। वहीं चौथी पारी में जब राहुल द्रवीड़ व सौरव गांगुली आस्ट्रेलिया को रिकार्ड 16 जीत से बेदखल करते दिखाई दे रहे थे तब गलत ठंग से आउट करार देने वाले अंपायरों की यह खलनायक जोड़ी मन में यह सेाचने पर मजबूर करती है कि कहीं यह अंपायर फिक्स तो नहीं
है ।