Monday, April 28, 2008

चढ़ती मंहगाई..

कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, कमोडिटी की कीमतों में उछाल और वैश्विक खाद्य संकट को देखते हुए मंहगाई में तेजी अचरज का विषय नहीं । हालांकि इसमें इस कदर उछाल होगा इसकी उम्मीद नहीं थी। महीने भर के अंदर मंहगाई दर ५ फीसदी से उछलकर ७ फीसदी तक पहुंच गई। इस उछाल ने सरकार, उपभोक्ताओं और अन्य क्षेत्रों को कमजोर स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया।

महंगाई की इस उछाल में खाद्य तेलों, स्टील और लौह अयस्क की बढ़ी हुई कीमतों ने अहम भूमिका निभाई है। वह तो गनीमत है कि सरकार ने कच्चे तेल की चढ़ी कीमतों को पूरी तरह उपभोक्ताओं तक पहुंचने नहीं दिया वरना महंगाई की जो तस्वीर हमें अभी दिखाई दे रही है वह और भी स्याह हो सकती थी। हालांकि इस प्रकार की परिस्थितियों का सामना हमने पहले भी करा है किंतु वर्तमान में मंहगाई की दर में जो तेजी व्याप्त है उसने भय का माहौल बना दिया है।

खाद्य और कमोडिटी की कीमतों में आग लगने की वजह से पूरी दुनिया में महंगाई की दर में तेजी का आलम है। विश्व बैंक समूह का अनुमान है कि खाद्य और ऊर्जा से जुड़ी चीजों की कीमतों में आई भयंकर तेजी की वजह से तकरीबन ३३ देशों में सामाजिक उथल-पुथल की आशंका पैदा हो गई है। हालांकि भारत वैश्विक कीमतों में हो रही बढ़ोतरी से थोड़ा अलग रहा है। इस साल जनवरी से मार्च के दौरान विश्व के बाजारों में गेहूं और चावलों की कीमतों में जबरजस्त उछाल देखने को मिला जिसकी तुलना में भारत में इनका मूल्य उतना नहीं चढ़ा।
उत्पादन की बात की जाए तो साल 2003-2004 से 2007-2008 के मध्य गेहूं के उत्पादन में मात्र 0.9 फीसदी की सालाना वृद्ध दर्ज की गई जबकि इस दौरान हमारी आबादी बढ़ने की दर खाद्य उत्पादन की दर के मुकाबले काफी अधिक रही। इस वजह से गेहूं के बफर स्टॉक में भारी कमी हो गई। इसका नतीजा यह निकल रहा है कि हम धीरे-धीरे आयात पर निर्भर होते जा रहे हैं। खाद्य तेल से जुड़ी फसलों के साथ भी यही बात लागू होती है। वैश्विक स्तर पर आई खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी का असर भारत में मंहगाई की दर पर स्पष्ट देखा जा सकता है। कारण यह है कि सोयाबीन को छोड़कर लगभग सभी वस्तुओं के लिए हम काफी हद तक आयात पर निर्भर है।

मूल्यों में लगी आग को बुझाने के लिए सरकार अनेक प्रकार के उपायों की घोषणा की है। इसके अंतर्गत खाद्य तेलों के आयात पर लगने वाली डच्यूटी में कमी के साथ ही इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। हालांकि इन उपायों का महंगाई की दर पर अधिक व्यापाक असर होता दिखाई नहीं पड़ रहा है। महंगाई की दर में हो रही बढ़ोतरी वैश्विक परिस्थतियों के अलावा लंबे समय तक कृषि की उपेक्षा का नतीजा है। खद्यान की बढ़ती खपत को देखते हुए हमें कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को ध्यान में रखकर नीतियां बनाने की जरूरत है, ताकि इस मामले में आत्मनिर्भरता हांसिल की जा सके।

वैश्विक घाद्य संकट के फिलहाल बने रहने की आशंका है। जब तक खाद्यान में आत्मनिर्भरता हांसिल नहीं की जाती, तब तक कमजोर तबके के लोगों के लिए सब्सिडी और अनाज का वितरण जैसे कार्यक्रम को प्रभावकारी तरीके से चलाया जा सकता है। इस कार्यक्रम की अपनी सीमाओं के बावजूद यह कीमतों को नियंत्रित करने की कवायद से ज्यादा प्रभावकारी होगा।

पंकज भारती

09892403516

उपसंपादक

भास्कर डॉट कॉम, मुंबई

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