Sunday, January 6, 2008

हार गया क्रिकेट

अंपायरिंग के लिहाज से चुक चुके बुजुर्ग बकनर आज एशिया उपमहाद्वीप के लिए खलनायक बन गए हैं। सिडनी टेस्ट मैच के पहले दिन 134 रन के स्कोर पर ही छह विकेट गंवाकर संकट में पड़ी कंगारू टीम के लिए अंपायर एक-दो बार नहीं बल्कि आधा दर्जन से ज्यादा बार संकटमोचक बने। पहली पारी में साइमंड्स को तीन बार और पोंटिंग को दो बार बल्लेबाजी करने का मौका देकर उन्होंने भारत से जीती हुई बाजी छीनने का जो सिलसिला शुरू किया वह मैच खत्म होने तक जारी रहा। मैदानी अंपायर के गलत फैसले की बात तो किसी तरह गले भी उतरती है, लेकिन टीवी के सामने बैठा थर्ड अम्पायर भी गलती करे तो क्या कहा जाए? आस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में अंपायरों की मेहरबानी शतकवीर माइकल हसी पर हुई। अंतिम दिन तो द्रविड़, गांगुली सहित तीन भारतीय बल्लेबाज मनमानी के शिकार बने। सुनील गावसकर और स्टीव वॉ जैसे दिग्गज खिलाड़ी भी इन फैसलों से व्यथित नजर आए। सिडनी टेस्ट के परिणाम से कई ऐसे सवाल उठ खड़े हुए हैं जिनका जवाब देना आईसीसी के लिए टेड़ी खीर हो सकता है। बकनर की छवि भारतीयों के खिलाफ पूर्वाग्रहग्रस्त फैसले देने की रही है, फिर भी भारतीय टीम प्रबंधन द्वारा कई बार दर्ज कराई गई आपत्तियों के बावजूद उन्हें मैच की जिम्मेदारी सौंपी गई। वल्र्डकप 2007 में बकनर के गलत फैसलों के मद्देनजर कई पूर्व खिलाड़ियों ने तो साफ कहा था कि या तो वे खुद रिटायर हो जाएं या आईसीसी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दे। इसके बावजूद वे अंपायरों के एलीट पैनल में शामिल हैं। वक्त आ गया है कि आईसीसी अंपायरिंग का स्तर सुधारने के लिए सख्त कदम उठाए वरना खेल मजाक बनकर रह जाएगा। साथ ही, नजदीकी फैसलों में तकनीक के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। टीम इंडिया ने खराब अंपायरिंग के विरोधस्वरूप पुरस्कार वितरण का बहिष्कार कर बिलकुल ठीक किया है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भी इस मामले को पूरी गंभीरता के साथ आईसीसी के साथ उठाना चाहिए और आईसीसी को मैच रेफरी को विवादास्पद या गलत फैसलों के मामले में दखल देने का अधिकार देने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। - पंकज भारती

1 comment:

sarvesh said...

kya baat hai guru...!
chhaa gaye aap...!
it's a v. nice article.